भगवान शिव को समर्पित है सोलह सोमवार व्रत कथा पढ़ें - RATNGYAN |

भगवान भोले नाथ शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं|इसलिए ही "भगवान भोले नाथ को देवों के देव महादेव" कहते हैं|भगवान भोले नाथ के सोलह सोमवार के व्रत करने एवं कथा सुनने से जातक की सभी मनोरथ शीघ्र पूर्ण हो जाते हैं, व जीवन में मनुष्य को अपार सुख समृद्धि, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है|और जातक (स्त्री - पुरुष) सुखी पूर्वक जीवन-यापन करते हैं|

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सोलह सोमवार व्रत कथा

Solah Somwar Vrat- भगवान भोले नाथ के सोलह सोमवार की व्रत कथा:

Solah Somwar Vrat Katha: एक बार भगवान भोलेनाथ जी माता पार्वती जी के साथ घूमते हुए मृत्युलोक की अमरावती नगर नामक स्थान पर पहुँचे |अमरावती नगर के राजा ने भगवान भोलेनाथ का एक भव्य मंदिर का निर्माण कर रखा था|भगवान भोले नाथ माता गौरा के संग उसी मंदिर में रहने लगे|एक दिन माता पार्वती जी ने भगवान भोलेनाथ से कहने लगी की - ‘हे प्राणनाथ! आज मेरी चौसर खेलने की इच्छा हो रही है |माता पार्वती जी की इच्छा को जानकर भगवान भोलेनाथ माँ पार्वती जी के संग चौसर खेलने बैठ गए | चौसर खेलना शुरू ही किये थे माता गौरा संग भोलेनाथ तभी उस मंदिर का पुजारी वहां आ गया|माँ पार्वती जी ने पुजारी जी से पूछा – कि हे पुजारी जी! यह बताइए कि इस चौसर खेल में कौन जीतेगा?

Solah Somwar Vrat Katha: इस पर मंदिर का पुजारी बोला – कि भगवान भोलेनाथ की जीत होगी | परन्तु चौसर के खेल में माता पारवती जी की जीत हुई और भगवान भोलेनाथ हार गये|तब मंदिर के पुजारी को झूठ बोलने के अपराध में माता पार्वती ने कोढी होने का श्राप दे दिया|तत्पश्चात भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती जी के साथ मंदिर से कैलाश पर्वत को पुनः लौट गये|

Solah Somwar Vrat Katha: पारवती जी के श्राप से पुजारी कोढ़ी हो गया जिससे  नगर के सभी लोग उस पुजारी के परछाई से कोसो दूर रहने लगे |इस बात की शिकायत कुछ लोगो ने रजा से की तत्पश्चात रजा ने किसी पाप के कारण पुजारी के कोढ़ी हो जाने का विचार कर उस मंदिर से निष्कासित कर दिया और उस पुजारी के जगह पर दूसरे ब्राम्हण को पुजारी रजा साहब ने बना दिया|पहले वाले पुजारी ने मंदिर के बाहर बैठकर भीख मांगने लगा|

Solah Somwar Vrat Katha: कुछ दिनों बाद स्वर्गलोक की कुछ अप्सरायें उसी मंदिर में पधारी और अप्सराओं का ध्यान कोढ़ी रूपी ब्राम्हण पड़ा तभी तभी अप्सराओं ने पुजारी से पुछा की यह हाल कैसे हुआ ? कोढ़ रुपी पुजारी ने निसंकोच भाव से उन्हे गौरा पारवती के चौसर खेलने वाले संबाद बताया की कैसे श्रापित हुआ|इस पर अप्सराओं ने पुजारी को भगवान भोलेनाथ के सोलह सोमवार का विधिवत व्रत रखने को कहा|

Solah Somwar Vrat Katha: इस पर पुजारी ने कहा की कृपया करके पूजन और व्रत की विधि क्या है ? यह मुझे बताइए – इस पर अप्सराओं के द्वारा बताया गया कि सोमवार के दिन सूर्योदय से पूर्व शैया त्यागकर, शौच, स्नान आदि कामों से निवृत्त होकर, साफ़ सुथरे वस्त्र पहनकर, आधा किलो गेहूं का आटा लेकर उस आटे का तीन अंग बनाना|फिर घी का दीपक जलाकर गुड़,प्रसाद, विल्वपत्र, पीला चन्दन, अछत, पुष्प, जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करना है |और इसके बाद गेहू के आटे के जो तीन अंग बनाये गये थे उसमे से एक अंग भगवान भोलेनाथ को चढ़ाना एवं एक स्वयं ग्रहण करना, शेष बचे हुए अंग वहां उपस्थित स्त्री, पुरुष, बच्चों में बाँट देना |

Solah Somwar Vrat Katha: इस तरह व्रत करते करते जब सोलह सोमवार बीत जाए तो सत्रहवे सोमवार के दिन 250 ग्राम आटे की बाटी बनाकर, उसमे घी और गुड़ मिलकर चूरमा बनाकर भगवान भोलेनाथ का भोग लगाकर प्रसाद स्वरुप भक्तों को बाँट देना | इस तरह अप्सराओं के बताये हुए सोलह सोमवार व्रत करने और व्रत कथा सुनने से भगवान भोलेनाथ तुम्हारे सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर तुम्हारा कोढ़ रोग भी नष्ट कर देंगे|इतना कह कर अप्सराएं स्वर्गलोक को लौट गयी|

Solah Somwar Vrat Katha: अप्सराओं के कथनानुसार पुजारी ने भगवान भोलेनाथ के सोलह सोमवार का व्रत किया जिसके परिणाम स्वरुप भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से पुजारी श्राप से मुक्त हो गया और इस तरह राजा ने मंदिर का पुजारी पुनः बना दिया|पुजारी पहले की भांति सुखी जीवन ब्यतित करने लगा|

Solah Somwar Vrat Katha: कुछ समय पश्चात भगवान भोलेनाथ माँ पार्वती के संग उसी मंदिर में जा पहुंचे और पुजारी और पुजारी को देखकर माता पार्वती जी आश्चर्य चकित रह गयी और पुजारी के कोढ़ से मुक्ति होने का कारण पूछा तो इस पर पुजारी ने माँ पार्वती को भगवान शिव के सोलह सोमवार व्रत करने की सारी कथा सुनाई|

Solah Somwar Vrat Katha: माता पार्वती जी पुजारी के द्वारा व्रत की कथा सुनकर प्रसन्न हुई और पुजारी से विधि पूछकर स्वयं सोलह सोमवार व्रत आरम्भ किया|माता पार्वती जी उन दिनों अपने पुत्र कर्तिकेय के दूर जाने से चिंतित रहती थी और अन्य उपाय भी कर चुकी थी कार्तिकेय जी को पास लाने के लिए लेकिन माँ पार्वती के पास कार्तिकेय जी नही लौट रहे थे|सोलह सोमवार का व्रत माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से कार्तिकेय के वापस आने की मनोकामना के लिए किया और व्रत ख़त्म होने के तीसरे दिन कार्तिकेय जी  वापस लौट आए|

Solah Somwar Vrat Katha: माता गौरा से अपने हृदय में हुए परिवर्तन के संबंध में कार्तिकेय जी ने पूछा कि - हे माता मेरा सारा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया | ऐसा कौन सा आपने किया था ? तब कार्तिकेय जी को माता पार्वती जी ने भगवान भोलेनाथ के सोलह सोमवार व्रत की कथा को विधि पूर्वक सुनाया |

Solah Somwar Vrat Katha: कार्तिकेय जी के एक ब्राम्हण मित्र थे, जिनका नाम ब्रह्मदत्त था|ब्राम्हण के प्रदेश चले जाने से कार्तिकेय जी बहुत दुखी थे|कार्तिकेय जी ने ब्राम्हण के वापस आने के कामने के साथ भोलेनाथ के सोलह सोमवार करने का निश्चय किया|व्रत के समाप्त होते ही कुछ दिनों के बाद कार्तिकेय जी के मित्र वापस लौट आये|तत्पश्चात ब्राह्मण ने कार्तिकेय जी से कहा- ‘हे मित्र तुमने ऐसा कौन सा उपाय किया की यह सब संभव हुआ|

Solah Somwar Vrat Katha: कार्तिकेय जी ने अपने एक ब्रह्मदत्त नामक ब्राह्मण मित्र के वापस लौटाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत किया | व्रत के समापन के कुछ दिनों के बाद मित्र लौट आया| ब्रह्मदत्त नामक ब्राम्हण ने कार्तिकेय जी से पुछा हे मित्र तुमने ऐसा कौन -सा उपाय किया था, जिसके कारण प्रदेश में मेरे विचार एकदम से बदल गए और मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए लौट आया|इस प्रकार कार्तिकेय जी ने अपने मित्र को भी सोलह सोमवार के व्रत की कथा - विधि पूर्वक सुनाया| ब्रह्मदत्त भगवान भोलेनाथ के व्रत के बारे में सुनकर बहुत प्रशन्न हुआ और उसने भी मनोकामना के साथ विधि पूर्वक व्रत किया|

Solah Somwar Vrat Katha: ब्रह्मदत्त सोलह सोमवार व्रत का समापन करने के बाद विदेश यात्रा पर निकला वहां नगर राजकुमारी गुंजन का स्वयम्बर हो रहा था जोकि नगर के राजा हर्षवर्धन की बेटी थी|हर्षवर्धन ने यह प्रतिज्ञा की थी कि उनकी पुत्री का विवाह उससे होगा जिसके गले में एक हथिनी के द्वारा माला पड़ेगा|ब्रह्मदत्त भी उस महल में अन्य राजकुमारों के साथ राज दरबार में मौजूद था|तभी एक सज धजकर हथिनी सूँड में जयमाला लिए वहां आई और हथिनी ने ब्रह्मदत्त के गले में जयमाला दाल दिया परिणामस्वरूप राजकुमारी का विवाह कार्तिकेय जी के मित्र ब्रह्मदत्त से हो गया|

Solah Somwar Vrat Katha: एक दिन ब्रह्मदत्त की पत्नी ने पूछा- आपने ऐसा कौन-सा शुभकर्म किया था|कि जो उस हथिनी ने सारे राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला डाल दी|ब्रह्मदत्त ने राजकुमारी के पूछने पर सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया|इस प्रकार अपने पति के द्वारा सोलह सोमवार की महत्वता जानकर राजकुमारी ने पुत्र की कामना को लेकर भगवान भोलेनाथ के सोलह सोमवार का विधि पूर्वक व्रत किया|तत्पश्चातभगवान भोले नाथ के आशीर्वाद से राजकुमारी ने एक सुशील, स्वस्थ एवं सुंदरपुत्र को जन्म दिया|राजकुमारी ने पुत्र का नामकरण कराया और राजकुमारी का नाम गोपाल के रूप में बिख्यात हुआ|

Solah Somwar Vrat Katha: गोपाल ने बड़े होने पर अपने माँ (राजकुमारी) से एक दिन प्रश्न किया की हे माँ मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म क्यों लिया इसका क्या कारण है|तत्पश्चात माता गुंजन ने भगवान भोलेनाथ का महातम और सोलह सोमवार के व्रत के विधि विधान के बारे में बताया|व्रत का महातम जानकार गोपाल ने भी व्रत का संकल्प किया|गोपाल 16 वर्ष की आयु में ही राज्य पाने की चेष्ठा के साथ सोलह सोमवार का विधिपूर्वक व्रत किया |व्रत के ख़त्म होने के बाद गोपाल समीप के नगर में घूमने के लिए गया|वहां के राजा जो की वृद्ध हो चुके थे गोपाल को पसंद करने लगे और बहुत ही धूम धाम से अपनी पुत्री राजकुमारी मंगला का विवाह गोपाल के साथ कर दिया|इस प्रकार गोपाल आनंद से राजमहल में रहने लगा|दो वर्ष पश्चात वृद्ध राजा का निधन हो गया और स्वयं गोपाल को उस नगर का राजा बना दिया गया| 

Solah Somwar Vrat Katha: इसी तरह गोपाल को राज्य की अभिलाषा सोलह सोमवार व्रत करने से पूर्ण हुए और रजा बनने के बाद गोपाल विधिपूर्वक सोलह सोमवार का व्रत करता रहा|व्रत के समाप्त होते ही अगले सोमवार को गोपाल ने अपनी पत्नी मंगला से व्रत की सारी सामग्री के साथ वह निकट भोलेबाबा के मंदिर पहुचे|परन्तु पति की आज्ञा का उल्लंघन करके मंगला ने अपने सेवकों के द्वारा पूजा की सारी सामग्री मंदिर भेज दिया|और स्वयं मंदिर नही गई जब राजा ने भगवान भोलेनाथ की पूजा करना प्रारम्भ किया तो आकाशवाणी हुई कि हे राजन  से 

Solah Somwar Vrat Katha: इस तुम्हारी पत्नी मंगला के द्वारा सोलह सोमवार व्रत का अपमान किया गया है कृपया रानी को महल से निष्काषित कर दिया जाए, नहीं तो तुम्हारा सब ऐश्वर्य नष्ट हो जाएगा| राजा आकाश - वाणी सुन करके तुरंत अपने महल में पहुंच गए और अपने सैनिकों को आदेश दिया कि महल से दूर किसी नगर में रानी को छोड़कर आओ | सैनिकों ने राजा के आज्ञा का पालन करते हुए रानी मंगला को घर से निकाल दिया गया|तत्पश्चात रानी भूख - प्यास से ब्याकुल होकर उस नगर में दर - दर भटकने लगी|रानी मंगला को उस नगर में एक बुढ़िया मिली जोकि सूत काटकर बाजार में बेचने जा रही थीलेकिन उस बुढ़िया से सूत उठ नहीं रहा था|बुढ़िया ने रानी मंगला से कहा कि हे बेटी यदि तुम मेरा सूत उठाकर बाजार तक पहुंचा दोगी और सूत बेचने में मेरी मदद करोगी तो मैं तुम्हें धन दूंगी| 

Solah Somwar Vrat Katha: रानी मंगला ने बुढ़िया की बात को स्वीकार कर जैसे  सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी बहुत जोर से आंधी चली और गठरी खुल गई|गट्ठर खुल जाने से सारा सूत आंधी तूफ़ान में उड़ गया|बुढ़िया ने इस बात से नाराज होकर रानी डांटकर भगा दिया|पुनः रानी मंगला चलते- फिरते नगर में एक तेली के घर पहुँच गई|रानी मंगला की हालत को देखकर तेली को दया आ गई और तरस खाकर रानी को घर में रहने के लिए कहा|भगवान भोलेनाथ के प्रकोप से तेली के तेल से भरा मटका एक - एक करके अचानक फूटने लगा|तेली ने भी रानी को वहां से भगा दिया| 

Solah Somwar Vrat Katha: रानी भूख - प्यास से ब्याकुल होकर आगे की ओर चल पडी |और रानी मंगला ने रास्ते में एक नदी दिखा जिस से पानी पीकर अपना प्यास बुझाना चाही तभी नदी का जल रानी मंगला के स्पर्श से सूख गया|रानी अपने किस्मत को कोसते हुए आगे जंगल की तरफ बढ़ी|जंगल में रानी मंगला को एक तालाब दिखा, जिसमे स्वच्छ जल भरा  हुआ देखकर रानी की प्यास और तेज हो गई|जल ग्रहण करने के लिए जैसे ही रानी मंगला तालाब की सीढ़ियों से उतारकर जल स्पर्श किया तभी उस जल में बहुत सारे कीड़े पैदा हो गए | तत्पश्चात रानी मंगला दुखी मन से अपनी प्यास को बुझाने के लिए गंदे जल को ही ग्रहण कर प्यास को शांत कर लिया | 

Solah Somwar Vrat Katha: रानी मंगला ने जल ग्रहण करने के बाद कुछ समय के लिए पेड़ की छाया में बैठ कर आराम  करने को सोचा तभी अचानक पेड़ के पत्ते सुख कर  बिखरने लग गए|रानी मंगला पुनः दूसरे पेड़ के नीचे बैठकर आराम करना चाही परन्तु रानी मंगला जिस पेड़ के नीचे बैठना चाहती थी तभी वह पेड़ सुख जाता था| 

Solah Somwar Vrat Katha: जंगल, नदी की यह दशा देखकर वहां के ग्वाल बाल बड़े दंग रह गए और इस प्रकार रानी मंगला को ग्वाल बाल समीप के मंदिर में पुजारी जी के पास लेकर गए| पुजारी रानी मगला के चेहरे  देखकर अनुमान लगाया कि रानी अवश्य ही किसी बड़े राजघराने की हैं, और दुर्भाग्यवश दर-दर भटक रही हैं| 

Solah Somwar Vrat Katha: रानी मंगला से पुजारी ने कहा कि इस मंदिर में रहो और कोई चिंता मत करो|कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जायेगा|पुजारी के द्वारा रानी मंगला को बहुत सांत्वना मिली और रानी उस मंदिर में रहने लगी| रानी मंगला अगर भोजन बनाती थी तो सब्जी जल जाती थी आटे में कीड़े पड़ जाते थे एवं जल से बदबू आने लगती थी| इस तरह पुजारी रानी मंगला के दुर्भाग्य से चिंतित होकर बोले कि - हे पुत्री तुमसे निश्चित ही कोई अनुचित कार्य हुआ है, जिसके कारण तुमसे देवगण नाराज हैं; फलस्वरूप देवगण के नाराज होने की वजह से तुम्हारी यह दशा हुई है|पुजारी की बात सुनकर रानी मंगला ने अपने पति (गोपाल) के आदेश पर मंदिर में सम्मिलित नहीं हो कर भगवान भोले नाथ की पूजा नहीं करने की सारी कहानी सुनाई।        

Solah Somwar Vrat Katha: पुजारी रानी मंगला की बात को सुनकर कहा कि अब तुम्हें चिंता करने की जरुरत नहीं है|कल सोमवार का दिन है| कल से भगवान भोले नाथ के सोलह सोमवार का विधि पूर्वक व्रत करना प्रारम्भ करो|भगवान् भोले नाथ अवश्य ही तुम्हारे पाप दोषों को क्षमा कर देंगे|इस प्रकार रानी मंगला ने पुजारी की बात मानकर भगवान शंकर के सोलह सोमवार के व्रत को प्रारम्भ कर दिया एवं रानी मंगला ने भगवान शिव की विधिवत पूजन अर्चन कर व्रत कथा सुनने लगी | जब रानी मंगला ने सत्रहवें सोमवार को विधिपूर्वक व्रत का समापन किया तभी उधर रानी मंगला के पति के मन में रानी की याद आयी, तत्पश्चात राजा गोपाल ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि - रानी को ढूँढकर लाओ|रानी को ढूँढ़ते - ढूँढ़ते सैनिक मंदिर के पास जा पहुंचे|सैनिकों ने रानी मंगला से पुनः घर लौट कर चलने को कहा, परन्तु सैनिको को पुजारी ने मना कर दिया सैनिक निराश मन से लौट गए और राजा को सारी कहानी बताया|     

Solah Somwar Vrat Katha: राजा (गोपाल) स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुंचकर और रानी को महल से निष्कासित करने के कारण पुजारी से क्षमा याचना माँगा, तत्पश्चात राजा से पुजारी ने कहा कि - रानी मंगला का यह हाल भगवान भोले नाथ के प्रकोप के कारण हुआ था|यह बात बताकर पुजारी ने रानी मंगला को राजा के साथ विदा किया| रानी मंगला के साथ राजा अपने महल में पहुंचे और खुशियाँ मनाये एवं पूरे नगर को सजवाया गया|राजा ने ब्राम्हण को वस्त्र, धन, अन्न का दान किया और नगर में गरीबों  वस्त्र भी बांटे|

इस प्रकार रानी मंगला ने सोलह सोमवार का व्रत करते हुए आनंदपूर्वक महल में रहने लगी और भगवान शिव के आशीर्वाद से उनके जीवन में फिर से सुख ही सुख हो गए|                      

|"जय श्री महाकाल"|"जय मां काली जी सदा सहाय "|

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1 Comments
  • Unknown
    Unknown 7/18/2023

    #jai baba vishwanaath ki

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