सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी (Sun Meri Devi Parvat Vasini)

शक्तिपीठों के बारे में तो आप सभी जानते होंगे।लेकिन आज हम आप लोगो को विंध्याचल धाम के श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती "सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया" प्रस्तुत कर रहा हूं। विंध्याचल माता को हिंगलाज माता भी कहते हैं। मां की इस आरती sun meri devi parvat vasini (सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी) के गाने से विंध्याचल माता के साथ ही साथ मां काली, मां लक्ष्मी की अपार कृपा मिलती है।

    विंध्याचल माता का निवास स्थान विंध्य पर्वत पर है। जोकि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर नामक जिले में पड़ता है।विंध्याचल को विंध्यानगर के नाम से भी जानते है।आप लोगो की जानकारी के लिए बताना चाहेंगे की मां विंध्याचल का यह धाम एक सिद्ध शक्तिपीठ है, जिनकी आरती - Sun Meri Devi Parvat Vasini गाने मात्र से ही माँ प्रशन्न हो जाती है। विद्वानों के अनुसार ऐसा माना जाता है की यहां विंधेश्वरी माता जी पूरे शरीर के साथ निवास करती है। 

    मां विंध्यवासिनी के इस मंदिर की विशेषता यह है की यह पूरे विश्व का ऐसा पहला मंदिर है जहां पर माता तीनो गुणों- सतोगुण, रजोगुण,तमोगुण के साथ महाकाली, महालक्ष्मी और अष्टभुजी माता के रूप में एक ही स्वरूप में विराजमान है। मां विंध्याचल की आरती "Sun Meri Devi Parvat Vasini-सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी, तेरा पार न पाया, मेरी माँ तेरा पार न पाया।।" हजारों दोषों का समन करता है।

    Sun Meri Devi Parvat Vasini | सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी

    सुन_मेरी_देवी_पर्वत_वासिनी_(_Sun_Meri_Devi_Parvat_Vasini_)
    Sun Meri Devi Parvat Vasini

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    पान सुपारी ध्वजा नारियल,
    ले तेरी भेंट चढ़ाया
    मेरी माँ
    ले तेरी भेंट चढ़ाया।1।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    सुवा चोली चोली तेरी अंग बिराजे,
    केसर तिलक लगाया
    मेरी माँ
    केसर तिलक लगाया।2।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    नंगे पग माँ अकबर आया,
    सोने का छत्र चढ़ाया,
    मेरी माँ
    सोने का छत्र चढ़ाया।3।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    ऊंचे पर्वत बानो देवालय,
    नीचे शहर बसाया
    मेरी माँ
    नीचे शहर बसाया।4।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    सतयुग द्वापर त्रेता मध्ये,
    कलयुग राज सवाया
    मेरी माँ
    कलयुग राज सवाया।5।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    धूप दीप नैवेद्य आरती,
    मोहन भोग लगाया,
    मेरी माँ
    मोहन भोग लगाया।6।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।

    ध्यानु भगत मैया तेरे गुण गाया।
    मनवांछित फल पाया।
    मेरी माँ*****
    मन वांछित फल पाया।7।

    सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
    तेरा पार न पाया,
    मेरी माँ.....
    तेरा पार न पाया।।
    ***********

    आशा करते है रत्न ज्ञान blog के माध्यम से माँ विंध्यवासिनी जी की आरती: सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी (Sun Meri Devi Parvat Vasini) आप सभी लोगों को नई धुन में सुनकर अच्छा लगा होगा इसी तरह प्रायः नए- नए धार्मिक अनुष्ठान, धार्मिक स्थल, चालीसा, जन्मकुंडली से सम्बंधित पोस्ट भी प्रस्तुत किए जाते है| कृपया हमारे वेबसाइट का नाम-RATNGYAN.COM जरूर याद रखे|
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