नौकरी में उन्नति, रोग निवारण के लिए पढ़ें आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra In Hindi Pdf benefits |
Aditya Hridaya Stotra: आदित्य हृदय स्तोत्र बहुत ही कीमती स्तोत्र है, जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की आराधना करता है, उस व्यक्ति के जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है|भगवान् सूर्यदेव ही ऐसे देव है कलयुग में जो की हर व्यक्ति को सुबह साक्षात दर्शन देते है, और जिस भी जातक के ऊपर भगवान सूर्य की किरण सुबह सुबह पड़ जाते है वह व्यक्ति अपने आपको धन्य मानता है |
दुनिया में मान - सम्मान कौन नहीं चाहता है, हर जन्म लेने के बाद जैसे जैसे बड़ा होता है उसके बुद्धि का विकास और सोच में वृद्धि होने लगता है, लेकिन हर इंसान सफल नही होता है इसी सब समाधान के लिए आज इस लेख के माध्यम से आदित्य हृदय स्तोत्र के बारे में विस्तृत चर्चा की गयी है
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में सफल होने अर्थात मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए तरह- तरह के उपाय बताये गये हैं, जैसे दशरथ कृत शनि स्तोत्र, मंगला गौरी व्रत कथा इत्यादि लेकिन आज हम इस लेख में आदित्य हृदय स्तोत्र की बात करने जा रहे जोकि व्यक्ति के आत्मबल, मान- सम्मान, पद- प्रतिस्ठा के लिए रामबाण स्तोत्र/ कवच की भाँती करता है|
नौकरी में उन्नति, रोग निवारण के लिए अवश्य पढ़े आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra Hindi Pdf And Its benefits |
आदित्य ह्रदय स्तोत्र भगवान श्रीराम चन्द्र जी ने रावण से विजय के लिए पढ़ा था| यह परम कवच अगस्त्य ऋषि द्वारा रामचंद्र जी को बताया गया था| आदित्य हृदय स्तोत्र का उल्लेख श्री राम चरितमानस के युद्ध काण्ड के 107 वे श्लोक में मिलता है|
भगवान सूर्यदेव का पूजा कलयुग में शीघ्र फलित है, क्योंकि सूर्यदेव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के मान - सम्मान में वृद्धि करता है जिसकी विस्तृत जानकारी इस लेख में दिया गया है|
#1. Aditya Hridaya Stotra (आदित्य हृदय स्तोत्र):
नौकरी में उन्नत्ति, शत्रु भय, रोग निवारण के लिए अवश्य पढ़े आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra Hindi Pdf And Its benefits | |
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः ,
आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा
देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ
सर्वत्र जयसिद्धौ च
विनियोगः।।
संस्कृत ध्यानम्-
नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,
जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,
विरिञ्चि नारायण
शङ्करात्मने।।
।।अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम।।
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे
चिन्तया स्थितम्।।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय
समुपस्थितम्।।1।।
दैवतैश्च समागम्य
द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।।
उपगम्याब्रवीद्
राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।2।।
राम राम महाबाहो श्रृणु
गुह्मं सनातनम्।।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।03।।
आदित्यहृदयं पुण्यं
सर्वशत्रुविनाशनम्।।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं
परमं शिवम्।।04।।
सर्वमंगलमागल्यं
सर्वपापप्रणाशनम्।।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।।05।।
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं
देवासुरनमस्कृतम्।।
पुजयस्व विवस्वन्तं
भास्करं भुवनेश्वरम्।।06।।
सर्वदेवात्मको ह्येष
तेजस्वी रश्मिभावन:।।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि:।।07।।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च
शिव: स्कन्द: प्रजापति:।।
महेन्द्रो धनद: कालो यम:
सोमो ह्यापां पतिः।।08।।
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ
मरुतो मनु:।।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण
ऋतुकर्ता प्रभाकर:।।09।।
आदित्य: सविता सूर्य: खग:
पूषा गभस्तिमान्।।
सुवर्णसदृशो
भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ।।10।।
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि:
सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।।
तिमिरोन्मथन:
शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽकों शुमान्।।11।।
हिरण्यगर्भ:
शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:।।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:।।12।।
व्योमनाथस्तमोभेदी
ऋग्यजु:सामपारग:।।
घनवृष्टिरपां मित्रो
विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।
आतपी मण्डली मृत्यु:
पिगंल: सर्वतापन:।।
कविर्विश्वो महातेजा:
रक्त:सर्वभवोद् भव:।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो
विश्वभावन:।।
तेजसामपि तेजस्वी
द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।15।।
नम: पूर्वाय गिरये
पश्चिमायाद्रये नम:।।
ज्योतिर्गणानां पतये
दिनाधिपतये नम:।।16।।
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय
नमो नम:।।
नमो नम: सहस्त्रांशो
आदित्याय नमो नम:।।17।।
नम उग्राय वीराय सारंगाय
नमो नम:।।
नम: पद्मप्रबोधाय
प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय
सुरायादित्यवर्चसे।।
भास्वते सर्वभक्षाय
रौद्राय वपुषे नम:।।19।।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय
शत्रुघ्नायामितात्मने।।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:।।20।।
तप्तचामीकराभाय हरये
विश्वकर्मणे।।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये
लोकसाक्षिणे।।21।।
नाशयत्येष वै भूतं तमेष
सृजति प्रभु:।।
पायत्येष तपत्येष
वर्षत्येष गभस्तिभि:।।22।।
एष सुप्तेषु जागर्ति
भूतेषु परिनिष्ठित:।।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं
चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।
देवाश्च क्रतवश्चैव
क्रतुनां फलमेव च।।
यानि कृत्यानि लोकेषु
सर्वेषु परमं प्रभु:।।24।।
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु
कान्तारेषु भयेषु च।।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव।।25।।
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं
जगप्ततिम्।।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।26।।
अस्मिन् क्षणे महाबाहो
रावणं त्वं जहिष्यसि।।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम
स यथागतम्।।27।।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा
नष्टशोकोऽभवत् तदा।।
धारयामास सुप्रीतो राघव
प्रयतात्मवान्।।28।।
आदित्यं प्रेक्ष्य
जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा
धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।
रावणं प्रेक्ष्य
हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्।।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य
वधेऽभवत्।।30।।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं
मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।31।।
।।आदित्य हृदय स्तोत्र सम्पूर्ण।।
#2. आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित (Aditya Hridaya Stotra Hindi)
।।अथ आदित्य हृदय स्तोत्रं।।
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे
चिन्तया स्थितम्।।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय
समुपस्थितम्।।1।।
उधर श्री रामचन्द्र जी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रण - भूमि
में खड़े हुए थे, इतने में रावण भी युद्ध के लिए श्री राम चन्द्र जी के सामने उपस्थित
हो गया।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।2।।
यहसब देखकर देवताओं के साथ युद्ध देखने आये भगवान अगस्त्य
मुनि, श्रीराम चन्द्र जी के पास जाकरके बोले।।2।।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्।।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।03।।
सबके ह्रदय में बसने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र
सुनो! वत्स! इस स्तोत्र के जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजयी हो जाओगे ।।03।।
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।04।।
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय स्तोत्रं’ । जोकि संपूर्ण
शत्रुओं का नाश करने वाला परम पवित्र स्तोत्र है। इसके जप करने से सदा ही व्यक्ति को विजय कि
प्राप्ति होती है। यह आदित्य हृदय स्तोत्र नित्य अक्षय और परम कल्याणमयी है।।04।।
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।।05।।
यह आदित्य हृदय स्तोत्र सम्पूर्ण मंगल करने वाला है। इस स्तोत्र से सब पापों का नाश हो जाता है। यह स्तोत्र चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम मार्ग है।।05।।
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।06।।
अपनी अनंत किरणों से भगवान सूर्य शोभायमान हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं। तुम इनका इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो-
- रश्मिमंते नमः
- समुद्यन्ते नमः
- देवासुरनमस्कृताये नमः
- विवस्वते नमः
- भास्कराय नमः
- भुवनेश्वराये नमः।।06।।
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:।।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि:।।07।।
संपूर्ण देवता भगवान सूर्य के स्वरुप हैं । भगवान् सूर्य
तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं ।
ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने
वाले हैं।।07।।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:।।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः।।08।।
भगवान ब्रह्मा, कुबेर, काल, सूर्य, महेंद्र, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी विख्यात हैं।।08।।
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:।।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:।।09।।
ये ही पितर, ब्रह्मा, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, प्रकाश के पुंज एवं ऋतुओं को प्रकट करने वाले हैं।।09।।
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्।।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:।।10।।
इनके नाम क्रमशः इस प्रकार है-
- आदित्य अर्थात अदितिपुत्र
- सविता अर्थात जगत को उत्पन्न करने वाले
- सूर्य अर्थात सर्वव्यापक
- खग, पूषा अर्थात पोषण करने वाले
- गभस्तिमान अर्थात प्रकाशमान
- सुवर्णसदृश्य, भानु अर्थात प्रकाशक
- हिरण्यरेता अर्थात ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज
- दिवाकर अर्थात रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले ।।10।।
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽकों शुमान्।।11।।
हरिदश्व, सहस्रार्चि अर्थात हज़ारों
किरणों से सुशोभित, सप्तसप्ति अर्थात सात घोड़ों वाले, मरीचिमान अर्थात किरणों से सुशोभित, तिमिरोमंथन अर्थात अन्धकार का नाश करने वाले, शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक अर्थात ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले अंशुमान।।11।।
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:।।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:।।12।।
हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख
प्रदान करने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले) ।।12।।
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:।।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।
व्योमनाथ अर्थात आकाश के स्वामी, तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र अर्थात जल को उत्पन्न करने वाले, विंध्यवीथिप्लवंगम अर्थात आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले।।13।।
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव:।।14।।
आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल अर्थात भूरे रंग
वाले, सर्वतापन अर्थात सबको ताप देने वाले, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव अर्थात सबकी
उत्पत्ति के कारण ।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:।।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।15।।
नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन अर्थात जगत कि रक्षा करने वाले, तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी
नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।।15।।
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:।।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:।।16।।
पूर्व गिरि उदयांचल तथा पश्चिम गिरि अस्तांचल के रूप में आपको
नमस्कार है। ज्योतिर्गणों अर्थात ग्रहों एवं तारों के स्वामी तथा दिन के अधि-पति आपको
प्रणाम है ।।16।।
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:।।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम:।।17।।
आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। हे सूर्यदेव आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुड़े रहते हैं, आपको कोटि- कोटि प्रणाम है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको कोटि-कोटि प्रणाम है। हे सूर्य देव आप आदिति के पुत्र है इसलिए आदित्य नाम से प्रसिद्द हुए हैं| हे सूर्य देव आपको बारंबार प्रणाम है।।17।।
नम: उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:।।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।
उग्र वीर और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है। प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड जो
कमलों को विकसित करने वाले है, उनको मेरा प्रणाम है।।18।।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे।।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:।।19।।
हे सूर्यदेव आप विष्णु जी,शिव जी एवं ब्रह्मा जी के स्वामी है, और सूर आपकी ही संज्ञा है, यह सूर्य-मंडल आपका ही तेज है| आप प्रकाश से परि-पूर्ण हैं| सभी को स्वाहा करने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है | आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं. आपको नमस्कार है ।।19।।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:।।20।।
आप शीत के निवारक एवं अज्ञान और अन्धकार के नाशक है तथा जड़ता एवं शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरुप अपरम्पार
है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के
स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।।20।।
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे।।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।21।।
हे सूर्यदेव आपकी प्रभा तपे हुए सोने के समान है, आप भगवान हरि और विश्वकर्मा हैं| तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के
साक्षी हैं, हे प्रभु आपको नमस्कार है।
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:।।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:।।22।।
हे रघुनन्दन! ये सूर्य भगवान ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं, एवं ये अपनी किरणों से गर्मी
पहुंचाते है, और वर्षा करते हैं।
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:।।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।
ये सभी भूतों में अंतर्यामी रूप से स्थित होकर भूतों के सो
जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र एवं अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने
वाले फल हैं।।23।।
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च।।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु:।।24।।
वेद और यज्ञ के फल भी सूर्य देव ही हैं, संपूर्ण लोक में
जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में भगवान सूर्यदेव ही पूर्ण समर्थ हैं।
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव।।25।।
हे राघव! विपत्ति एवं कष्टों में दुर्गम मार्ग एवं किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष भगवान सूर्य देव का भजन -कीर्तन करता है उस व्यक्ति को दुख नही भोगना पड़ता हैं।।25।।
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्।।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।26।।
इसलिए तुम एकाग्र मन होकर इन देवों के देव जगदीश्वर की पूजन
करो। इस आदित्यहृदय स्तोत्र का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में अवश्य
विजय हो जाओगे।।26।।
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।27।।
हे महाबाहो! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे यह कहकर अगस्त्य ऋषि जी जैसे आये थे, वैसे ही वापस चले गए।।27।।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।।
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्।।28।।
अगस्त्य जी का उपदेश सुनकर महा-तेजस्वी श्री रामचन्द्रजी का
शोक दूर हो गया और उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्ध मन से आदित्य हृदय स्तोत्र को धारण
किया।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।
और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते
हुए आदित्य हिरदय स्तोत्र का तीन बार जप किया। आदित्य हृदय स्तोत्र के जप करने से
भगवान् राम को बड़ा आश्यर्य हुआ। फिर अत्यंत पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठा कर।।29।।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्।।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।
रावण की ओर देखने लगे और उत्साह पूर्वक विजय पाने के लिए भगवान्
श्रीराम रावन की ओर आगे बढे, उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय
किया।।30।।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।31।।
भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए श्री रामचन्द्रजी की और देखा और निशाचर राज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा– कि हे ‘रघुनन्दन! अब जल्दी करो’ । इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदय मंत्र संपन्न होता है।
।। इत्यार्षे श्रीमद रामायणे वाल्मिकीये आदि काव्ये युद्ध कांडे पञ्चाधिक शततम सर्गः।।
#3. Aditya Hridaya Stotra Pdf:
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#4. Aditya Hridaya Stotra In Hindi Pdf (आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित पीडीऍफ़)
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#5. Aditya Hridaya Stotra Benefits (आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे)
- यदि कोई व्यक्ति नौकरी में अत्यधिक परेशान है या बार- बार नौकरी में बाधा आ रही है तो ऐसे व्यक्ति को आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करना फायदेमंद रहता है|
- इंटरव्यू में जाने वाले लोगों को या फिर परीक्षा की तैयारी में खासकर आईएएस (IAS), PCS (पीसीएस) अन्य प्रतियोगी परीक्षा में लगे हुए व्यक्ति के लिए हर दिन आदित्य ह्रदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) का पाठ अवश्य करना चाहिए|
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र पढने के पहले यदि कोई व्यक्ति 3 बार गायत्री मन्त्र को पढ़ ले फिर आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे तो अति उत्तम परिणाम प्राप्त होते है|
- किसी विशेष मनोकामना को सिद्ध अर्थात पूर्ण करने के लिए जो जातक आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करते है निश्चित ही आदित्य ह्रदय स्तोत्र करने से मनोकामना पूर्ण हो जाते है|
- नौकरी में प्रमोशन के लिए यथाशीघ्र व्यक्ति को आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए|
- प्रयास करने के बाद भी असफल रहने वालों के लिए आदित्य ह्रदय स्तोत्र एक कवच की भाँती फायदा पहुंचाता है|
- आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ करने से व्यक्ति को नौकरी में प्रोन्नति , आत्मविश्वाश, प्रशन्नता, धन-प्राप्ति, एवं सभी कार्यों में सफलता मिलती है |
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ नित्य करने से व्यक्ति को अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं|
- गोपनीय स्तोत्र परम पवित्र और संपूर्ण शत्रु का नाश करने वाला है|
- सूर्यदेव की प्रशन्न और कृपा पाने के लिए आदित्य ह्रदय स्तोत्र अवश्य पढना चाहिए |
- जिन लोगों की कुंडली में सूर्यदेव अशुभ स्थिति में बैठे हो या सूर्यदेव की डिग्री कमजोर हो ऐसे लोगों को सूर्यदेव के इस आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नित्य करना चाहिए|
- जो लोग सूर्य के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए माणिक (Manikya Gemstones) रत्न धारण किये है, उनके लिए भी आदित्य ह्रदय स्तोत्र कारगर उपाय है|
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र रविवार के दिन अवश्य पढना चाहिए इससे जातक को हर तरह के कार्यों में सफलता के योग बनते है|
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से नेत्रों से सम्बंधित दोष दूर होते है और आत्म विश्वाश व्यक्ति का चढ़ा बाधा रहता है|
- सरकारी मुकदमा इत्यादि से परेशान है तो ऐसे व्यक्ति को आदित्य ह्रदय स्तोत्र अवश्य पढना चाहिए|
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के तालमेल घर में व जीवनसाथी से एवं पिता से खासकर संबंधों में सुधार होता है इसमें कोई संशय नही है|
- यदि लगातार हड्डी में दर्द की शिकायत हो और स्वस्थ्य में सुधार नहीं हो रहा हो तो ऐसे व्यक्ति के लिए आदित्य ह्रदय स्तोत्र रामबाण मन्त्र है|
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ यदि व्यक्ति सच्चे मन से करता है तो व्यक्ति सुखी एवं समृद्ध जीवन निर्वहन करता है|
#6. People Also Ask:
Ques: आदित्य स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
Ans: जातक को नहा धोकर साफ सुथरे कपड़े पहनकर रविवार के दिन सूर्य की लालिमा के सामने आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए |
Ques: आदित्य मन्त्र क्या है?
Ans: आदित्य हृदय मन्त्र महर्षि वाल्मीकि जी के श्री राम चरितमानस का एक मन्त्र स्तोत्र है जो की भगवान् सूर्य की प्रशंसा के लिए संपूर्ण विश्व में जाना जाता है|
Ques: आदित्य हृदय स्तोत्र कब से शुरू करना चाहिए?
Ans: ज्योतिष आचार्य गौरव जी के अनुसार शुक्ल पक्ष के किसी भी रविवार के दिन शुरू किया जाये तो सर्वोत्तम मन जाता है जिस व्यक्ति को आदित्य हृदय स्तोत्र का पूरी तरह से लाभ प्राप्त करना है उसे नियमित रूप से सूर्योदय के समय इसका पाठ करना चाहिए पाठ पूर्ण होते ही सूर्य देव का मन ही मन मनोकामना के साथ स्मरण करना चाहिए |
Ques: आदित्य हृदयम का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
Ans: अच्छे जीवन रोगमुक्त रहने के लिए लगातार व्यक्ति दो महीने अर्थात 60 दिन तक एवं दिन में 6 बार क्रमशः 3 बार सुबह और 3 बार शाम आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए|
Ques: 11 आदित्य कौन है?
Ans: 11 आदित्य- विवस्वान्,सवित्र, त्वष्टा, भग, धाता, आर्यमन, मित्र, वरुण, अम्सा, पूषन, इंद्र और विष्णु (वामन रूप में) शामिल हैं।
Ques: आदित्य ह्रदय स्तोत्र किसने लिखा था?
Ans: आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना महान ऋषि अगस्त्य ने की थी
Ques: आदित्य हृदयम स्तोत्रम किसने लिखा था?
Ans: आदित्य हृदय स्तोत्र ऋषि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण के युद्ध काण्ड के १०७ वे अध्या में आती है
Ques: सूर्य देव के 12 नाम कौन कौन से हैं?
Ans: सूर्य देव के 12 नाम इस प्रकार है, जो नीचे क्रमशः दिया गया है-
- ॐ सावित्रे नम:
- ॐ सूर्याय नम:
- ॐ भास्कराय नम:
- ॐ मित्राय नम:
- ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
- ॐ आदित्याय नम:
- ॐ आर्काय नम:
- ॐ रवये नम:
- ॐ मारिचाये नम:
- ॐ भानवे नम:
- ॐ खगय नम:
- ॐ पुष्णे नम: