रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय इसका अर्थ जरूर पढ़ें।
नमस्कार प्यारे भक्तों, इस लेख में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी का जिक्र आपलोगाे की जानकारी के लिए किया गया है। क्योंकि जहां देखो वही आजकल ईर्ष्या, द्वेष देखने को मिल रहा है। इस पूरे समाज में किसी न किसी कारणवश हर रिश्ते में दरार पड़ ही जा रहा है। इसलिए ही हमारे पूर्वज, ऋषि, मुनि एक दोहा बहुत गाते थे। इसका बहुत बड़ा मतलब है इस कलयुग में हर घर के लिए यह दोहा सटीक बैठता है।
कहीं न कहीं जो पहले के लोग विद्वान कबीर, तुलसीदास, रहीम, महर्षि वाल्मिकी जी ने जो भी लिखा वह इस कलयुग में सच भी निकल रहा है। एक दोहा है रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए का भावार्थ आइए जानते है,
यह जो प्रेम रिश्ता होता है उसमे यदि प्रेम का मोती है तो उसको हमेशा बनाए रखो अर्थात कहने का आशय यह है की यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसमे हमेशा प्रेम बेकरार रखिए यदि किसी कारणवश कुछ गलतियां भी हो तो उसको इग्नोर करना चाहिए क्योंकि इस संसार में यदि किसी को आप अपना लिए तो उससे कभी भी यदि गुस्सा किए और पुनः एक होने की कोशिश करोगे तो पहले जैसा प्रेम नहीं देखने को मिलेगा।
प्यार जो होता है वह एक धागे की तरह होता है उसमे हमेशा प्रेम बरकरार रखना चाहिए। उसको कभी भी तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि यदि प्रेम में एक गांठ अर्थात मनमुटाव हो गया तो फिर दोबारा जुड़ने के बाद एक गांठ जिंदगी में तो पड़ ही जाता है।
निष्कर्ष
यहां पर कवि ने प्रेम, रिश्ते, समाज से संबंध की व्याख्या की है। और एक धागे से रिश्ते में प्रेम की परिकल्पना की है। क्योंकि एक धागा बिना टूटे हुए देखने में एकता दिखाई देता है। लेकिन जब वही धागा किसी कारणवश यदि टूट जाता है तो उसको पुनः जोड़ने के लिए गांठ लगाना ही पड़ता है। कहने का आशय यही है की यदि दोबारा से जुड़ जाता है तो जुड़ता नहीं है दोबारा और यदि जुड़ता भी है तो गांठ पड़ ही जाता है।