जानिये होलिका दहन की कहानी एवं होलिका दहन क्यों किया जाता है?
नमस्कार प्यारे दोस्तों, जैसा की हम सभी जानते हैं हिन्दू धर्म में होली के त्यौहार का अत्यधिक महत्व है | रंगों का यह त्यौहार भारत के लगभग हर राज्यों में मनाया जाता है | खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा में मुख्य रूप से कई दिनों तक होली चलती रहती है | होली प्रेम और सौहार्द का प्रतीक भी है जिससे आपसी प्रेम सम्बन्ध बना रहे इसी उपलक्ष्य में होली मनाई जाती है | होली के एक दिन पहले मध्य रात्री में होलिका जलाने का प्राविधान है | हम सभी लोग इस आर्टिकल में जानेंगे होलिका दहन की कहानी एवं होलिका दहन क्यों किया जाता है |
होलिका दहन की कहानी एवं होलिका दहन क्यों किया जाता है
एक बार राक्षस राज हिरण्य कश्यप ने अपने कठोर तप से ब्रम्हा जी को प्रशन्न कर वरदान माँगा | ब्रम्हा जी से वरदान पाकर वह स्वयं को भगवान समझने लगा और अपने राज्य में उसने सभी प्रजा को स्वयं की पूजा करने का आदेश दे दिया | हिरण्य कश्यप भगवान विष्णु जी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था | परन्तु प्रहलाद इस सब के विपरीत था | हिरण्य कश्यप का पुत्र बालक भक्त प्रहलाद बचपन से भगवान विष्णु के भक्त थे | प्रहलाद भगवान विष्णु जी की भक्ति में हर वक़्त लीन रहते थे | प्रहलाद की भगवान विष्णु की उपासना से हमेशा हिरण्य कश्यप क्रोधित रहता था और हिरण्य कश्यप के बार- बार समझाने के बाद भी प्रहलाद ने भगवान विष्णु जी की आराधना करना नहीं छोड़ा | हिरण्य कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मरवाने के लिए बहुत बार कोशिश किया परन्तु भगवान विष्णु जी की माया से हर बार नाकाम रहा | हिरण्य कश्यप ने अपने सैनिकों को बुलाकर प्रहलाद को ऊँचे पहाण से नीचे फिकवा दिया | एक बार गहरी नदी में डूबा दिया एवं एक बार हाथी के पैरों तले कुचलवाने के लिए हाथियों के झुण्ड में खड़ा कर दिया | इसी तरह सापों से कटवाने के लिए हजारों सापों के बीच छोड़ दिया परन्तु भक्त प्रहलाद हर प्रस्थिति में भगवान विष्णु की आराधना करते और बच जाते थे | अंत में हिरण्य कश्यप ने प्रहलाद को मरवाने के लिए अपनी बहन होलिका जी से संपर्क किया | होलिका को भगवान शिव जी से बरदान प्राप्त था की वह कभी भी आग में नही जलेगी | इसके लिए बह्ग्वान शिव ने उसे एक चादर दी थी जिसे ओढने के बाद वह जलती नहीं थी | होलिका ने अपने भाई हिरण्य कश्यप की बात मान ली और प्रहलाद को जलाने के लिए सहमत हो गयी | फाल्गुन महीने की पूर्णिमा रात को होलिका बालक भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलती हुई चिता में बैठ गयी | होलिका ने वह चादर ओढ़ ली ताकि वह बच जाए | प्रह्लाद अपनी बुआ होलिका की गोद में बैठकर भगवान विष्णु जी की आराधना करते रहे | भगवान विष्णु जी की कृपा से चादर प्रहलाद के ऊपर आ गयी जिससे भक्त प्रहलाद बच गये और होलिका जलकर भस्म हो गयी | इसलिए हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है | होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है | तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन फल्ल्गुन पर्व होली के रूप में मनाया जाता है |