जरूर पढ़ें यह लेख - मंदोदरी और राम का संवाद सुनकर समझ जायेंगे की राम चन्द्र जी कौन हैं |

जिस भगवान के अन्दर पराई स्त्री का छु जाना तो दूर की बात है उसके परछाई से भी दूरी बना लेना ऐसे थे हमारे राम | ऐसे ही भगवान को मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं कहा जाता था | जिनका ह्रदय कोमल हो और मन में हमेशा शुद्ध विचार हो ऐसे थे हमारे राम | जिनमे एक बन्दर से लेकर एक गिलहरी तक से प्रेम भाव रखना और अपने शत्रुओं के मारने पर भी पश्चाताप करना ऐसे थे प्रभु राम हमारे |

इस लेख को पढ़कर समझ जायेंगे की राम जी कौन हैं? मंदोदरी और राम का संबाद सुनकर समझ में आ जायेगा राम चन्द्र जी कौन हैं

बात उस समय की है जब रावण की मृत्यु हो गयी और विभीषण बैठ के भाई के वियोग में विलाप कर रहे थे तभी मंदोदरी शाम को रणभूमि में जाती है | मंदोदरी को विभीषण देखकर बोले किसके बारे में पूछ रही हो रावण के बारे में ! लंकेश ये रहे | इस पर मंदोदरी बोली कि नहीं नहीं मैं लंकेश को देखने नहीं आई हूँ | मै तो राम को देखने आई हूँ! कौन है राम और क्या मर्यादा है राम जी की

मंदोदरी कहती है चार वेदों का ज्ञाता, प्रकांड, पंडित, विद्वान् इतना की जब संस्कृत बोलते थे तो देवता भी सूत्र गिनने में लग जाते थे कि क्या बोल रहा है रावण | धन था तो इतना की त्रिकुट पर्वत पर बने हुए नगरी के चक्रवर्ती सम्राट सबसे बड़े सम्राट| ज्ञानी थे तो इतने की जिनको भगवान् भी कहते थे की पंडित जी को बुलाओ रामेश्वरम की स्थापना करानी है | इतना बड़ा ज्ञानी इतना पैसे वाला और बुद्धि एवं बल था इतना, बलवान इतना की मृत्यु यमराज शनि और कुबेर सभा में हाथ जोड़कर खड़े रहते थे | इतना बलवान, इतना धनवान, इतना बुद्धिमान इतना सब होने के बावजूद भी परिवार था तो इतना बड़ा की मेरे जैसे सौ रानियाँ सदेव सेवा में रहती थी वंश था तो इतना बड़ा इन्द्रजीत जैसे योधा बड़े बड़े बेटों का पिता इतना सब था | 

तो बोले फिर देखने क्या आई हो मैं तो उनको देखने आई हूँ की इतना सबकुछ होने के बावजूद भी सोने के मुकुट लगाने वाले को एक बनवासी ने कैसे मार डाला मैं तो वनवासी को देखने आई हूँ की जिसके वाण में इतनी ताकत थी जो इनको धराशाई कर दिया जिसको अभिमान इतना था की चलता दसानन डोलत अवनीं मंदोदरी राम जी का दर्शन करने आई हैं कौन है वो तपस्वी 

एक राजा को एक तपस्वी के वाण ने मार डाला मैं उस तीर का दर्शन करने आई हूँ | मै उस धनुषवाण वाले का दर्शन करने आई हूँ| कौन है वो जरा मुझे भी दिखाओ मैं देखना चाहती हूँ | तो विभीषण जी ने कहा चलिए मैं लेके चलता हू आपको वहां बैठे थे राम जी शाम हो चुकी थी लगभग - 2 सूरज उतर रहा था और मंदोदरी जिधर से आयी थी तो उधर से अगर राम जी इधर बैठे थे तो वो पीछे से आयी तो अब जब वो पीछे से आयी अगर सूरज उतर रहा है तो परछाई गिरती है तो राम जी शिला पर मौन बैठे थे उदास क्यों वो तो जीत चुके थे फिर भी आँखों में उदासी क्योंकि उनको रक्त दिखाई दे रहा था मासूमों का राम थे आँखों में आंसू थे की बेवजह इतने लोग मारी गये ये क्यों हुआ यह नहीं होना चाहिए था आपको समझ में आ गया होगा राम जी उदास क्यों थे जबकि युद्ध जीत गये थे बोले नरसंघार हो गया बेकार सी बात में इतने लोग मारी गये इतने लोग ख़त्म हो गये बेकार सी बात में एक जिद इंसान को कहाँ से कहाँ तक ले आती है बेकार के अहंकार है आज इसको ख़त्म कर दिया ये तो चलो मरा लेकिन कितने मस्सों लोग मारे गये सोच कर राम जी दुखी थे |

तभी मंदोदरी पीछे से आई तो मंदोदरी की परछाई राम जी के चरणों पर आई जैसे ही पैरों पर पड़ते हुए परछाई पीठ पर आने वाली थी की राम जी उठकर खड़े हो गये और झटके से उठकर बोले माँ विभीषण जी ने कहा ये रानी मंदोदरी हैं लंकेश रावन की पत्नी इनके पति थे वो 

राम जी कहते हैं माँ क्षमा चाहता हूँ मैं ये अपराध हुवा है मुझसे ब्रम्हां थे रवां लेकिन वध हुवा है लेकिन मेरी कोई गलती नहीं मैंने बहुत समझाया दूत भेजें माना नहीं मारा गया आप इस रणभूमि में अपने पति का दर्शन करने आई मैं आपका दर्शन करके धन्य हुआ तब मंदोदरी कहती है मैं अपने पति का दर्शन करने नहीं आई हूँ राम! मैं तो तुम्हें देखने आई थी लेकिन मैं अब तुम्हारा दर्शन करके जा रहीं हूँ| विभीषण ने कहा इसका मतलब क्या है ? तो मंदोदरी कहती है की मैं पूछने आई थी की राम के पास ऐसा क्या है जो रावन के पास नहीं था इतना सब होने के बाद भी रावन हार कैसे गया और एक तपस्वी जीत कैसे गया ? मैं सवाल करने आई थी लेकिन सवाल पूछने से पहले मुझे जवाब मिल गया है | 

राम ने पुछा माँ देवी क्या जवाब मिला है आपको ?

मंदोदरी ने कहा की चार वेदों का ज्ञाता भी था, पंडित भी था, विद्वान् भी था, सोने की नगरी का मालिक भी था, बलवान भी था, दस सर वाला बुद्धिमान भी था हर तरह से श्रेष्ठ था | लेकिन एक कमी रह गयी | इस पर श्री रामचंद्र जी ने विनम्रता से पुछा क्या कमी रह गयी थी माता ?

मंदोदरी कहती है- आप उठ क्यों गये थे मेरे आने पर?

तब राम जी कहते हैं क्योंकि माँ आपकी परछाई मेरे चरणों पर पड़ रही थी और मैं रघुवंशी हूँ पराई नारी की परछाई अपने पर पढनें नहीं दे सकता|

मंदोदरी कहती है यही तो जवाब मुझे मिला है की जो पराई नारी की परछाई भी स्वीकार न करे उनको राम कहते हैं और जो पराई नारी का हरण करके अपने घर में लाकर बैठा दे उसको रावण कहते हैं | काश की इतना सब पद प्रतिस्ठा, मान - सम्मान होनें के बजाय जो चरित्र राम के पास है, वो मेरे पति के पास होता तो आज लंकेश जीवित होते | रावण के पास चरित्र नहीं था |

निष्कर्ष

इस लेख को पढ़ कर आप समझ गये होंगे की मर्यादा पुरोषत्तम राम को ऐसे ही नहीं भजा जाता है | उनका पुरुषार्थ उच्च कोटि का था | मंदोदरी की परछाई राम जी की पीठ पर पडी तो राम चन्द्र जी व्याकुल होकर के खड़े हो गये की पराई नारी की परछाई भी मुझ पर नहीं पड़ सकती उनको राम कहते हैं| काश की इतना चरित्र मेरे पति रावन में होता तो वो सीता का हरण करके अशोक वाटिका में न लाते और आज मेरा परिवार मेरा कुल मेरा वंश मेरा बर्वाद न होता | मनुष्य को महान बनाने के लिए चरित्र का होना जरूरी है कुछ उसूल होना जरूरी है कुछ जीवन में ऐसा कठिन संघर्ष अनुशाशन होना जरूरी है और वही मनुष्य को महान बनता है वही राम बनता है | वरना तो भगवान भी हमारी जैसे थे |

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